चिखे.....
या मेरे खुदा मेरे मौला
यह क्या बोला जा रहा है?
वहेशीयों को मजहब से
तोला जा रहा है।
दरिंदगी अपने चरम पर है
और चर्चे सारे धरम पर है।
इन्सानियत का रेप हो रहा है
तु है की खर्राटे मार सो रहा है।
सरे आम लडकीयाँ
लुटी जा रही है।
तुज पर से मेरी आस्था
टुटी जा रही है।
हैवानों का कैसे धरम
कैसे मजहब हो सकता है?
बचाता रहेगा इनको तो
गजहब हो सकता है।
आप बीती पर खाली चर्चे है
हातों में चुनावी पर्चे है।
गर है तू तो इनका खात्मा कर।
शांत मेरा अशांत आत्मा कर।
इज्जत यहाँ तार तार है
आलम यह बार बार है।
सुर्खीयाँ सुन रोता है मन।
मुर्तीयाँ तोड कहेता है मन।
ये कैसी दुनिया बनाई
ये कैसा इन्सान??
शिकारी है चारो ओर
इन्सानियत परेशान।
शोरों में पिडीताओं की चिखे
लुप्त हो रही है।
पता तो तेरा है नही
पर आवाम तेरी भक्त हो रही है।
बालासाहेब धुमाळ।
मो. 9673945092
No comments:
Post a Comment